खामोश रहता हूँ, मगर गूँगा नही हूँ
कवि: अ. कीर्तिवर्धन
भरा है खार जीवन का, खारा नही हूँ।।
हूँ दरख्त बूढा, अब फल दे नही सकता,
मगर छाया- ईंधन देता, ठूँठ नही हूँ।।
माना कि बच्चे व्यस्त हैं, निज जीवन में,
सीखता हूँ आज भी, खाली नही हूँ।।
हो गया हूँ बूढा उम्र से, यह तो सच है,
ढल रहा शरीर, पर मन से थका नही हूँ।।
(स्रोत: दिव्य रश्मि समाचार)
No comments:
Post a Comment