सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला: सीबीआई ने ABG शिपयार्ड के निदेशकों के खिलाफ जारी किया लुकआउट सर्कुलर
नई दिल्ली. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बैंकों को हजारों करोड़ रुपये का चूना लगाने वाली एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड के निदेशकों के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है, ताकि वे देश छोड़कर कहीं भाग न सकें. उन पर एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड ने देश के 28 बैंकों को 22,842 करोड़ रुपये की चपत लगाने के मामले में शामिल होने का आरोप है. सीबीआई ने कहा है कि मुख्य आरोपियों के भारत में ही होने की खबर है. इससे पहले 2019 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भी मुख्य आरोपी के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया था. सीबीआई ने एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड और उसके तत्कालीन अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ऋषि कमलेश अग्रवाल के अलावा तत्कालीन कार्यकारी निदेशक संथानम मुथास्वामी, निदेशकों – अश्विनी कुमार, सुशील कुमार अग्रवाल और रवि विमल नेवेतिया और एक अन्य कंपनी एबीजी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ भी कथित रूप से आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और आधिकारिक दुरुपयोग जैसे अपराधों के लिए मुकदमा दर्ज किया था.
सीबीआई के पीआई नई दिल्ली कमलेश चन्द्र तिवारी को जांच करने के लिए आदेश दिया गया है. इन लोगों के खिलाफ आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा किया गया है. बैंकों के संघ ने सबसे पहले आठ नवंबर 2019 को शिकायत दर्ज कराई थी, जिस पर सीबीआई ने 12 मार्च 2020 को स्पष्टीकरण मांगा था. सीबीआई द्वारा मुंबई (Mumbai), पुणे (Pune), भरूच ( Bharuch), सूरत (Surat), 13 लोकेशन पर छापेमारी की गई. इसमें कंपनी के निदेशकों, कई प्राइवेट पर्सन सहित दफ्तर में छापेमारी की गई. इस छापेमारी के दौरान कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, मोबाइल फोन, बैंकिंग कम्प्यूटर इत्यादि को जब्त किया गया. इसे अब विस्तार से सीबीआई की टीम द्वारा खंगाला जा रहा है.
इस मामले में सीबीआई द्वारा जल्द ही कई आरोपियों को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा जाएगा, उसके बाद पूछताछ के लिए दिल्ली स्थित सीबीआई मुख्यालय में बुलाया जाएगा. अधिकारी ने कहा कि कंपनी को एसबीआई के साथ ही 28 बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने 2468.51 करोड़ रुपये के ऋण को मंजूरी दी थी. उन्होंने कहा कि फॉरेंसिक ऑडिट से पता चला है कि वर्ष 2012-17 के बीच आरोपियों ने कथित रूप से मिलीभगत की और अवैध गतिविधियों को अंजाम दिया, जिसमें धन का दुरुपयोग और आपराधिक विश्वासघात शामिल है. सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर के मुताबिक जिस कार्य के लिए इस कंपनी ने 28 बैंकों से कर्ज लिया, उस कंपनी में उसे निवेश या खर्च नहीं करके बल्कि दूसरे कंपनी के मार्फत उन पैसों को घुमाकर (way of diversion of funds) लोन वाली कंपनी को नुकसान में दिखा दिया और अपना फायदा उठाकर उन 28 बैंकों के साथ फर्जीवाड़े को अंजाम दिया.
सीबीआई को शक है कि इस लोन को निर्गत करने में बैंक के कई सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों और प्राइवेट लोगों की भी संदिग्ध भूमिका है. अर्न्सट एंड यंग एलएलपी ने इसकी फोरेंसिक ऑडिट की. इस ऑडिट की अवधि वर्ष 2012 से 2017 तक की है. इसी बीच इस मामले को आईसीआईसीआई बैंक कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया के लिए एक अगस्त 2017 को राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण यानी एनसीएलटी, अहमदाबाद में लेकर गया. अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच कंसर्टियम में शामिल कई बैंकों ने एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड धोखेबाज घोषित किया.
सीबीआई अधिकारी ने बताया कि एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड वर्ष 2001 से ही एसबीआई के साथ काम कर रही है. एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड का खाता 30 नवंबर 2013 को गैर निष्पादित परिसंपत्ति यानी एनपीए में शामिल किया गया. बैंक की शिकायत के मुताबिक यह एनपीए 22,842 करोड़ रुपये का है और एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड को अधिकतर ऋण राशि वर्ष 2005 से 2012 के बीच दी गई. उसे यह ऋण आईसीआईसीआई बैंक की अगुवाई वाले कंसर्टियम ने जारी किया है. कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन के तहत 27 मार्च 2014 को एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड के ऋण का पुनर्गठन किया गया. हालांकि, इसके बावजूद कंपनी का कामकाज दोबारा शुरू नहीं हो पाया.
(Source : News 18 )
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