चुनाव से पहले पार्टियों में 'फ्री' वस्तुएं व सेवाएं देने का कॉम्पिटिशन
चुनाव करीब हैं। पार्टियां वोटरों को लुभाने की हर कोशिश में लग गई हैं। नई-नई स्कीमों और ऑफरों से उनका ध्यान खींचा जा रहा है। मुफ्त बिजली, पानी और हेल्थ सर्विस देने की बात पुरानी हो चुकी है। गाड़ी इससे कहीं आगे निकल गई है। फ्री की फेहरिस्त में टैबलेट, लैपटॉप और घर शामिल हो गए हैं। पार्टियां इन वादों को अपने मेनिफेस्टो में भी शामिल कर रही हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या चुनाव से पहले 'फ्री' बांटने की होड़ का कुछ फायदा होता है? क्या वोटरों का मूड इससे वाकई बदलता है?
इस साल पांच राज्यों में चुनाव हैं। माहौल पूरी तरह गरम है। यूपी पर लोगों की खास निगाहें हैं। यहां बीजेपी के सामने समाजवादी पार्टी (सपा) कड़ी टक्कर पेश करने की तैयारी में है। वहीं, आम आदमी पार्टी भी प्रदेश में अपनी मौजूदगी दर्ज करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। हर पार्टी वोटरों का ध्यान खींचना चाहती है। इसके लिए मुफ्त सेवाएं देने के बड़े-बड़े ऐलान हो रहे हैं।
आगे बढ़ने से पहले नए साल के पहले दिन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की घोषणा के बारे में बात कर लेते हैं। शनिवार को उन्होंने कहा कि सपा अगर सत्ता में आई तो लोगों को 300 यूनिट घरेलू बिजली मुफ्त मिलेगी। सिंचाई बिल भी माफ किया जाएगा। इस बारे में यादव ने ट्वीट भी किया। पूर्व सीएम ने लिखा- 'नववर्ष की हार्दिक बधाई व शुभकामना! अब बाइस (2022) में 'न्यू यूपी' में नई रोशनी से नया साल होगा 300 यूनिट घरेलू बिजली फ्री व सिंचाई बिल माफ होगा। नववर्ष सबको अमन-चैन, खुशहाली दे। सपा सरकार आएगी और 300 यूनिट फ्री घरेलू बिजली व सिंचाई की बिजली मुफ्त दिलवाएगी। #बाइस_में_बाइसिकल'
सपा अध्यक्ष का वादा न तो चौंकाने वाला है न नया। पिछले साल 16 सितंबर को आप ने भी उत्तर प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने पर दिल्ली की तरह घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने ऐलान किया था। यह भी कहा था कि 38 लाख परिवारों पर बकाया बिजली का बिल माफ किया जाएगा। इसके अलावा पार्टी ने यह भी बोला था कि उसकी सरकार बनने पर छोटी-बड़ी सभी तरह की जोत वाले किसानों को मुफ्त बिजली उपलब्ध कराई जाएगी। बात सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं है। पंजाब और उत्तराखंड सहित जिन अन्य राज्यों में इस साल चुनाव होने हैं उनमें भी आप ने कमोबेश इसी तरह की घोषणाएं की हैं।
ये कॉम्पिटिशन है कड़ा
पिछले कुछ सालों में चुनाव से पहले 'फ्रीबीज' यानी मुफ्त में कुछ देने की घोषणा का ट्रेंड बढ़ा है। पार्टियां इसे मतदाताओं को आकर्षित करने का सबसे दमदार तरीका मनाने लगी हैं। 2019 के आम चुनाव में न केवल कांग्रेस बल्कि बीजेपी भी इस होड़ में शामिल रही। इसके चलते ऑफरों में बड़ा बदलाव आया। मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली और मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं जैसी पारंपरिक पेशकशों ने अपना आकर्षण खो दिया।
इसके बजाय सीन में फ्री गैजेट्स और कैश इंसेंटिव जैसे नए ऑफर सामने आ गए। कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव जीतने पर हेलीकॉप्टर देने और चांद की सैर कराने तक की घोषणा कर दी। बेशक ये फिजूल थीं, लेकिन गिनती तो इनकी भी है।
'फ्रीबीज' का कॉम्पिटिशन कितना तगड़ा हो चुका है इसका अंदाजा पंजाब में आप की घोषणाओं से लग जाता है। पार्टी सत्ता में आने पर राज्य में हर घर को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने, 24 घंटे बिजली आपूर्ति उपलब्ध कराने और सरकारी अस्पतालों में इलाज और दवाएं मुफ्त मुहैया कराने का वादा कर चुकी है। यही भी कहा गया है कि सत्ता में आने पर पार्टी राज्य में हर महिला के खाते में प्रति माह एक हजार रुपये डालेगी। जिन बुजुर्ग महिलाओं को पेंशन मिल रही है, उन्हें भी यह रकम दी जाएगी।
कितना असरदार है ट्रेंड?
यह कहना गलत होगा कि इन लुभावनी स्कीमों और ऑफरों का कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसका कई तरह से फर्क पड़ता है। पहली बात यह है कि इससे पार्टी के बारे में माहौल बनता है। इसके चलते चर्चा शुरू हो जाती है। आम आदमी पार्टी इसका उदाहरण है।
दिल्ली में आप सरकार महिलाओं के लिए मुफ्त बस की सवारी, 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली और 400 यूनिट तक सब्सिडी, 20,000 लीटर प्रति माह तक मुफ्त पानी और गरीब बच्चों को फ्री एजुकेशन देती है। इसके अलावा मुफ्त वाई-फाई के साथ नए पानी और सीवर कनेक्शन के लिए डेवलपमेंट चार्ज में छूट देती है। मोहल्ला क्लीनिक में मुफ्त इलाज, दवाएं और जांच की सुविधा और पैनल में शामिल अस्पतालों में मुफ्त सर्जरी भी ऑफर करती है। सड़क हादसों और आग की घटनाओं में पीड़ितों के इलाज का खर्च भी सरकार उठाती है।
लोगों को मिलने वाले ये प्रत्यक्ष फायदे दिखते हैं और महसूस भी होते हैं। शायद यही कारण भी है कि बीजेपी की जोरदार लहर में भी आप हिली नहीं। इतना ही नहीं, अपने गठन के कुछ ही सालों में उसने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बनाई है।
क्या सही है यह कल्चर?
इसमें दो पहलू हैं। सत्ता में आने पर अगर कोई पार्टी अपने चुनावी वादे को पूरा करती है तो निश्चित ही लोगों को कुछ राहत मिलती है। हालांकि, जो लोग मुफ्त सेवाओं का मजा लेते हैं या उनका लाभ उठाते हैं, उन्हें इस सच को नहीं भूलना चाहिए कि ये मुफ्त की चीजें किसी राजनीतिक दल की जेब से नहीं बल्कि टैक्सपेयर्स के पैसे से आती हैं।
इसका एक मकसद गरीबों की क्षमता बढ़ाना, गरीबी कम करना और लक्षित लाभार्थियों को सशक्त बनाना है। ऐसे में इसका सही हाथों में जाना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसके नुकसान ही नुकसान हैं। यह किसी भी राज्य के संसाधन पर बोझ बढ़ाता है। इस बोझ को कर्ज लेकर पूरा किया जाता है। इस तरह तमाम दूसरी स्कीमों से कटौती करनी पड़ती है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों को भुगतना पड़ता है। उस स्थिति में तरक्की की रफ्तार सुस्त पड़ती है।
(स्रोत : नवभारत टाइम्स)
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