'विश्वनाथ धाम बनकर हुआ तैयार', पीएम मोदी ने काशी में लिया जो संकल्प, जानिए कैसे प्राप्त की उसकी सिद्धि
पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम अब लोकार्पण के लिए पूरी तरह से तैयार है। करीब 352 साल के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनरुद्धार का काम एक बार फिर से पीएम मोदी के संकल्प का साक्षी बनने जा रहा है। धाम के निर्माण के दौरान काशी की मूल संरचना और काशी के पुराने मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया। यहां तक कहा गया कि काशी खंड के विग्रहों को भी नुकसान पहुंचाया गया है। इन आरोपों की क्या सच्चाई है एनबीटी ऑनलाइन ने पूरी पड़ताल की और आपके लिए ले कर आये हैं धाम के निर्माण की पूरी कहानी।
55 हजार वर्ग मीटर के क्षेत्र में धाम के निर्माण की प्रक्रिया बहुत ही जटिल थी। तंग गालियां, संकरे रास्ते, 315 भवनों का अधिग्रहण, करीब 700 परिवारों व छोटे बड़े दुकानदारों का विस्थापन, काशी खंडोक्त के अनुसार वर्षों से पूजित मंदिरों का संरक्षण और इस परियोजना का राजनैतिक विरोध, कई बाधाएं आईं। पीएम मोदी के संकल्प के रास्ते में कई चुनौतियां थी। शुरुआत से ही इस धाम के निर्माण को लेकर काशी की मूल धार्मिक मान्यता और संरचना को बचाये रखने का एक बड़ा दबाव पीएम मोदी पर था। लेकिन, शिलान्यास के दो वर्षों के भीतर ही धाम अब मूर्त रूप ले चुका है
27 विग्रह, 58 मंदिर, 125 मूर्तियां की गई संरक्षित
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री और बीएचयू के एसवीडीवी के प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि 352 वर्ष साल पहले रानी अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया था। महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर पर सोने की परत लगाकर बाबा विश्वनाथ को भव्यता प्रदान की थी। लेकिन, बाबा विश्वनाथ को संकरी और बदबूदार गलियों के बीच से निकाल कर उसे भव्य स्वरूप देने का संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इस धाम के निर्माण के दौरान ऐसे-ऐसे मंदिर निकले, जिसके चारों ओर से घर बना कर अतिक्रमण कर लिया गया था।
कई ऐसे मंदिर और मूर्तियां सामने आई, जिनका वर्णन काशी खंडोक्त में है। उन्हें मुक्त कराया गया। काशी खंड के अनुसार कुल 27 विग्रह समेत 58 मंदिर को मुक्त कराया गया है, जिन पर लोगों ने अपना कब्जा जमा रखा था। 125 से ज्यादा ऐसी दुर्लभ मूर्तियां निकली, जिनके बारे में बस किस्सों में ही सुना जाता था। इन सभी विग्रह और मंदिरों की एक मणिमाला विश्वनाथ धाम में तैयार की जा रही है। उन्हें पूरे सम्मान के साथ पुनर्स्थापित किया जा रहा है।
315 भवन, 700 परिवार हुए विस्थापित, अब तक 600 करोड़ खर्च
काशी विश्वनाथ धाम के निर्माण के दौरान सबसे ज्यादा जटिल प्रक्रिया अधिग्रहण की थी। 700 से ज्यादा छोटे बड़े दुकानदार और परिवार, जो कई पीढ़ियों से इस मंदिर के आसपास संकरी गलियों में बसे थे। ऐसे सभी लोगों की संपत्ति की पहले जिओ टैगिंग की गई। उनके संपत्ति का पूरा विवरण जुटाया गया। अधिग्रहण एक जटिल प्रक्रिया थी, इसमे वर्षों का समय लगता। समय बचाने के लिए धाम के डिजाइन के अनुसार चिन्हित 55 हजार वर्गमीटर में रहने वाले 315 भवन स्वामियों से संपर्क किया गया।
काशी विश्वनाथ मदिर के सीईओ विशाल सिंह ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। हर एक भवन स्वामी से एक-एक कर के संपर्क किया गया। उनके माध्यम से किरायेदारों को भी विश्वास में लिया गया। सहमति के बाद उचित मुआवजा दिया गया। सबकी सहमति मिलने के बाद भवन को तोड़ना भी एक कठिन प्रक्रिया थी। दिन में घरों को गिराना और उसके बाद पूरी रात मलबे को साफ किया गया। ध्यान रखा गया कि काशी के लोगों का जीवन प्रभावित न हो। मुआवजे से लेकर निर्माण तक कि पूरी प्रक्रिया में अब तक करीब 600 करोड़ की लागत आयी।
रंगदारी से लेकर विग्रहों के अपमान का लगा आरोप
काशी विश्वनाथ धाम के घोषणा के साथ ही इस पर स्थानीय स्तर पर विरोध भी शुरू हो गया। काशी की कई संस्था और संतों ने इस परियोजना का विरोध शुरू कर दिया। इस विरोध की कमान ज्योतिष पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की अगुवाई में उनके उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने संभाल रखी थी। निर्माण के क्रम में विग्रहों और मंदिरों को नुकसान पहुंचाने का आरोप संतों और राजनैतिक दलों की ओर से लगाए गए।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से आरोपों की सच्चाई जानने के लिए संपर्क किया गया तो उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया। मुआवजे के दौरान रंगदारी का भी एक मामला सामने आया, लेकिन जांच में आरोप झूठा निकला। धाम के क्षेत्र से निकले शिवलिंग को कूड़े के ढेर में फेकने के सनसनी खेज आरोप भी लगे। कांग्रेस ने इसका खुल कर विरोध किया, लेकिन कभी भी आम काशी के लोगों का साथ इन आरोप लगाने वालों को नही मिला।
(स्रोत : नवभारत टाइम्स)
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