Sunday, 17 October 2021

अंतरिक्ष में मौत होने पर शवों के साथ क्या होगा? स्पेस टूरिज्म बढ़ा तो उठने लगे सवाल

 अंतरिक्ष में मौत होने पर शवों के साथ क्या होगा? स्पेस टूरिज्म बढ़ा तो उठने लगे सवाल

लंदन
जल्द ही ऐसा वक्त भी आ सकता है, जब हम छुट्टियां मनाने के लिए अंतरिक्ष की सैर पर जाएंगे। अमेजन के पूर्व सीईओ जेफ बेजोस की कंपनी ब्लू ओरिजिन ने तो बाकायदा स्पेस टूरिज्म को शुरू भी कर दिया है। उनकी कंपनी मोटा पैसा लेकर लोगों को अंतरिक्ष की निचले हिस्से की सैर भी करवा रही है। एलन मस्क भी अपनी कंपनी स्पेसएक्स के जरिए मंगल ग्रह पर बेस बनाने का ऐलान कर चुके हैं। इतना ही नहीं, वर्जिन गैलेक्टिक के रिचर्ड ब्रेनसन भी अपनी कॉमर्शियल स्पेसफ्लाइट को आम लोगों के लिए शुरू करने का ऐलान कर चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर अंतरिक्ष यात्रा के समय किसी की मौत हो जाए तो उसके शव के साथ क्या होगा?

बायोलॉजिकल एंथ्रोपोलॉजी के एक्सपर्ट ने दिया जवाब
इस सवाल का जवाब इंग्लैंड के मिडिल्सब्रो में स्थित टेस्सीड यूनिवर्सिटी के हेल्थ एंड लाइफ साइंसेज के डीन और अप्लाइड बायोलॉजिकल एंथ्रोपोलॉजी के एक्सपर्ट टिम थॉम्पसन ने दिया है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी पर किसी व्यक्ति की मौत होने पर उसका शव सड़ने-गलने के कई चरणों से होकर गुजरता है। इस बारे में 1247 में सोंग सी की दुनिया की पहली फोरेंसिक साइंस बुक 'द वाशिंग अवे ऑफ रांग्स' में जिक्र किया गया था।

धरती पर मरने के बाद शव के साथ क्या होता है?
उन्होंने बताया कि सबसे पहले खून का बहना रूक जाता है (लिवोर मोर्टिस) और गुरूत्वाकर्षण के चलते यह जमा होने लगता है। इसके बाद शव ठंडा हो जाता है और मांसपेशिया अकड़ जाती है। इस प्रक्रिया को रिगोर मोर्टिस कहते हैं। इसके बाद, रासायनिक प्रतिक्रिया को तेज करने वाला प्रोटीन कोशिका की दीवारों को तोड़ देता है और उसकी सामग्री को बाहर निकाल देता है।

जीवाणुओं के फैलने से शुरू होता है केमिकल रिएक्शन
इसके साथ-साथ, जीवाणु पूरे शरीर में फैल जाता है। वे नरम कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं और उनसे जो गैस निकलता है उससे शव फूल जाता है। इसके बाद दुर्गंध आने लगती है और नरम उत्तक टूट जाते हैं। शव के सड़ने-गलने की यह प्रक्रिया अंदरूनी कारक हैं लेकिन बाहरी कारक भी हैं जो सड़ने-गलने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। उनमें तापमान, जीवाणुओं की सक्रियता, शव को दफन करना या कपड़े आदि में लपेट कर रखना तथा आग और पानी की मौजूदगी शामिल है।

शव को ममी में तब्दील करने का कार्य पानी की गैरमौजूदगी वाली परिस्थितियों में होता है, जो गर्म या ठंडा हो सकता है। नम पर्यावरण में ऑक्सीजन के बगैर ऐसी स्थिति बनती है जिसमें पानी वसा को हाइड्रोलाइसिस प्रक्रिया के जरिए मोम जैसे पदार्थ में विखंडित कर सकता है। मोमीय परत त्वचा पर एक कवच बन जाता है और उसका संरक्षण करता है। हालांकि, कई मामलों में नरम उत्तक आखिरकार खत्म हो जाते हैं और सिर्फ कंकाल बच जाता है। ये कठोर उत्तक हजारों वर्षों तक टिके रह सकते हैं।

अंतरिक्ष में शवों के साथ ऐसी होगी प्रतिक्रिया
अन्य ग्रहों पर अलग गुरूत्व रहने के चलते लिवोर मोर्टिस चरण निश्चित तौर पर प्रभावित होगा और अंतरिक्ष में तैरते समय गुरुत्व का अभाव रहने पर खून नहीं जमेगा। हालांकि स्पेससूट के अंदर रिगोर मोर्टिस की प्रक्रिया जारी रहेगी। जिससे शव की मांसपेशिया जकड़ जाएंगी। मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव भी शव के सड़ने -गलने में मदद करते हैं। हालांकि, हमारे सौर मंडल के अन्य ग्रहों पर कीट और शव को खाने वाले अन्य जंतु मौजूद नहीं हैं। सड़ने-गलने की प्रक्रिया में तापमान भी एक मुख्य कारक है। उदाहरण के तौर पर चंद्रमा पर तापमान 120 डिग्री सेल्सियस से 170 डिग्री सेल्सियस है। इससे शवों में ताप से प्रभावित बदलाव या ठंड से जमने के प्रभाव देखे जा सकते हैं।

(स्रोत : नवभारत टाइम्स)

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