Wednesday, 22 September 2021

UPSC: पिता की थी छोटी सी दुकान, ट्यूशन पढ़ाकर खुद करते थे पढ़ाई, मेहनत से मिली सफलता और बने बड़े अफसर

 UPSC: पिता की थी छोटी सी दुकान, ट्यूशन पढ़ाकर खुद करते थे पढ़ाई, मेहनत से मिली सफलता और बने बड़े अफसर



जब इंसान अपनी मजबूत इच्छा शक्ति के साथ कोई चीज हासिल करने की सोच लेता तो उसके सामने बड़ी से बड़ी मुश्किल भी आसान हो जाती है। कुछ ऐसी ही संघर्ष की कहानी है बिहार के निरंजन कुमार की, जो आज यूoपीoएसoसीo (UPSC) की परीक्षा पास करके भारतीय राजस्व सेवा में बड़े अफसर बन चुके हैं।

संघर्ष की शुरूआत- बिहार के एक छोटे से गांव के रहने वाले निरंजन कुमार ने जब युo पीo एसo सी) की तैयारी करने की सोची तो ये उनके लिए आसान नहीं थी। हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार उनके घर की माली स्थिति ठीक नहीं थी। पिता की एक छोटी सी खैनी का दुकान थी, जिससे किसी तरह से घर चल रहा था। चार भाई-बहनों की पढ़ाई लिखाई का इंतजाम करना परिवार के लिए काफी मुश्किल था, लेकिन इसके बाद भी ना तो परिवार ने निरंजन का साथ छोड़ा और ना ही निरंजन ने हार मानी।

नवोदय स्कूल से की पढ़ाई- निरंजन बिहार के नवादा जिले के पकरी बरमा के रहने वाले हैं। पढ़ाई का खर्च परिवार पर भारी पड़ रहा था, तभी निरंजन का नवोदय विद्यालय में सेलेक्शन हो गया। अब यहां निरंजन के लिए अपनी आसमान वाली कहानी थी। पढ़ाई में खर्च था नहीं और पढ़ने के लिए सुविधा भी बहुत थी। यहां से दसवीं करने के बाद इंटर की पढ़ाई के लिए वो पटना चले गए, लेकिन मुश्किलें एक बार फिर से निरंजन के सामने आ गई थी।

बच्चों को दिया ट्यूशन- एक बार फिर निरंजन को पढ़ाई के लिए पैसे को जरूरत थी, इसके लिए उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। खुद की कोचिंग के लिए रोज कई किलोमीटर पैदल चले। तब जाकर उनकी पढ़ाई शुरू हो पाई। 12 वीं के बाद उनका सेलेक्शन आईआईटी के लिए हो गया। यहां से परिवार को कुछ उम्मीद बंधने लगी थी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्हें कोल इंडिया में नौकरी मिल गई। इसके बाद निरंजन की शादी भी हो गई, लेकिन निरंजन का सपना तो आईएएस बनने का था। जिसके लिए एक बार फिर से वो तैयारी करने में जुट गए।

यूपीएससी हुआ क्लियर- निरंजन की मेहनत और संघर्ष तब सफल हो गया जब इस इंजीनियर ने 2016 में यूपीएससी (UPSC) निकाल लिया। रैंक के हिसाब से तब उन्हें आईआरएस (IRS) के लिए चुना गया। यूपीएससी निकालने के बाद निरंजन ने अपने सघर्ष के दिनों को याद करते हुए मीडिया से कहा था कि वो अपने पिता की छोटी सी दुकान पर भी बैठा करते थे। पिताजी जब बाहर जाते थे तो वो भी खैनी बेचते थे। उनके पिता अभी भी खैनी की दुकान चलाते हैं।

(स्रोत: जनसत्ता)


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