एलोपैथिक चिकित्सा रूपी चक्रव्यूह के दुष्प्रभाव Vs आयुर्वेदिक चिकित्सा के चमत्कारिक प्रभाव
लेखक : कृष्ण बल्लभ शर्मा "योगिराज"
लेकिन केवल ज्यादा से ज्यादा लाभ (रुपया) कमाने के उद्देश्य से बनिया बकाल वैश्य शुद्र आदि लोगों द्वारा फार्मास्युटिकल कंपनी की बनाई हुई आयुर्वेदिक दवा में आयुर्वेदिक शुद्धता होती नहीं और वह दवा उतनी असरकारक कारगर होती नहीं।
दूसरी बात कि आसव अरिष्ट अवलेह चूर्ण आदि के रूप में उपलब्ध मानवी चिकित्सा की जड़ीबूटी वाली दवा धीरे धीरे असर करती है। लेकिन वह भी बीमारी का सटीक इलाज करती है।
इसीलिए कुछ लोग आयुर्वेद को बदनाम करके एलोपैथी की दवाओं के मार्केटिंग और प्रचार करने के लिए बोलते बताते हैं कि आयुर्वेद की दवा धीरे धीरे फायदा करती है लेकिन एलीपैथी की दवा बहुत जल्दी फायदा करती है।
वास्तविकता यह है कि एलोपैथी में किसी बीमारी के सही सार्थक इलाज की कोई व्यवस्था है ही नहीं।
एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में केवल जानलेवा हानिकारक साइड इफेक्ट और रिएक्शन के दुर्गुण से युक्त पेनकिलर दर्दनिवारक, एंटीबायोटिक, एस्टरॉयड और सर्जरी ऑपरेशन के अतिरिक्त कुछ और है ही नहीं।
पेनकिलर, एंटीबायोटिक, एस्टेरॉयड आदि से थोड़े समय के लिए दर्द और बीमारी से तुरंत कुछ लाभ अवश्य हो जाता है। परंतु एक बीमारी के इलाज के चक्कर में चार ज्यादा बड़े घातक बीमारी को पैदा कर देते हैं। उसके बाद चार घातक बीमारी के इलाज के चक्कर में अन्य जानलेवा लाइलाज बीमारी को पैदा करके 10 से 20 लाख रुपया लूटकर जिंदा आदमी को मौत के मुँह में धकेल देते हैं। यही होता है एलोपैथी चिकित्सा पद्धति का चक्रव्यूह।
एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के चक्रव्यूह में फंसने पर एलोपैथी के डॉक्टर, हॉस्पीटल, फार्मास्युटिकल कंपनी, साइंटिस्ट, फार्मेसी के दुकानदार, पैथोलॉजिकल लैब, डायग्नोस्टिक सेंटर आदि मिलकर दुर्योधन द्रोण, कर्ण, जयद्रथ आदि के रूप में कौरव पक्ष के सातों महारथी बनकर अपने षड्यंत्र द्वारा चक्रव्यूह में अकेले फंसे हुए अभिमन्यु रूपी मरीज को लहूलुहान करके उसकी नृशंस हत्या कर देते हैं।
इसी को कहा जाता है एलोपैथी का चक्रव्यूह।
कोरोना युग में भी एलोपैथी के इस चक्रव्यूह में फंसकर मरीज रूपी अभिमन्यु मारा जा रहा है।
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