Monday, 10 May 2021

पति भर्ती थे, नहीं तो डॉक्टर को चप्पल से मारती:महिला की दिल दहलाने वाली दास्तान

पति भर्ती थे, नहीं तो डॉक्टर को चप्पल से मारती:महिला की दिल दहलाने वाली दास्तान; अस्पताल वाले ऑक्सीजन जानबूझकर बंद कर देते ताकि हम महंगी ऑक्सीजन खरीदें, फिर भी जान नहीं बचा सके

     मधुबनी के रहने वाले रौशन चंद्र दास नोएडा में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। वे पत्नी के साथ होली मनाने रिश्तेदार के घर भागलपुर गए थे। वहीं वे कोरोना की चपेट में आ गए। इलाज के लिए उन्हें स्थानीय ग्लोकल हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया। लेकिन जब उनकी हालत ज्यादा बिगड़ने लगी तो पत्नी उनको लेकर पटना आईं और राजेश्वर अस्पताल में भर्ती करा दिया। पर, यहां वे जिंदगी की जंग हार गए। हद यह कि जब उनके पति कोरोना से एक-एक सांस लड़ते रहे, वे खुद भी कई बार अस्पताल कर्मियों की छेड़छाड़ की शिकार बन रही थीं। अंत में उनके पति की ऑक्सीजन न मिलने की वजह से मौत हो गई। उनकी पत्नी ने कहा कि अस्पताल वाले अक्सर ऑक्सीजन बंद कर देते थे, ताकि लोग बेचैन होकर ज्यादा कीमत पर ऑक्सीजन खरीदें, मैंने भी खरीदा। पर उनकी जान न बचा सकी।
      बिहार में कोरोना के इलाज की यह दर्दभरी आपबीती रुचि रौशन ने सुनाई है। रुचि रौशन ने आरोप लगाया है कि अस्पताल की लापरवाही की वजह से उनके पति की जान चली गई। उनकी दास्तान सुन कर तो लग रहा है कि इनके पति को कोरोना ने नहीं, बल्कि संवेदनहीन और बेशर्म सिस्टम ने मार डाला।

डॉक्टर पर गंदे इशारे करने का आरोप

      उन्होंने राजेश्वर अस्पताल के एक डॉक्टर पर आरोप लगाया है कि वह गंदे-गंदे इशारे करता था... चलता था तो शरीर से सटते हुए गुजरता था। रुचि कहती हैं, मैं उसे इसलिए इग्नोर करती रही कि मेरा पति यहां भर्ती था... नहीं तो चप्पल खोल कर उसको मारती। पति का इलाज तो केवल कागजों पर होता रहा। कोई देखने तक नहीं आता था। मैं चाहती हूं कि जिस तरह मेरे पति की मौत हुई, वैसे अन्य लोग जान न गंवाएं। डॉक्टर के भरोसे मरीज को नहीं छोड़ा जा सकता। मेरे पति को वेटिंलेटर पर रखा जाता तो शायद वे बच जाते।

अब सुनिए भागलपुर से पटना की पूरी कहानी

      ''रुचि बताती हैं- हम दोनों (वह और पति) नोएडा में रहते हैं। होली मनाने बिहार आए थे। 9 अप्रैल को पति की तबियत खराब हुई। उन्हें बुखार हो गया। कोरोना की दो-तीन बार जांच कराई, रिपोर्ट निगेटिव आई। RTPCR की रिपोर्ट भागलपुर में 10 दिन तक नहीं आई। दिल्ली के डॉक्टर की सलाह पर सीटी चेस्ट करवाया तो इंफेक्शन आया। 60 फीसदी लंग इंफेक्टेड था। उन्हें फौरन भागलपुर के ग्लोकल अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया। मां और पति दोनों को वहां भर्ती कराना पड़ा। वहां इतनी लापरवाही हुई कि डॉक्टर 10 मिनट के लिए ही देखने आते। उन्होंने रेमडेसिविर इंजेक्शन सजेस्ट किया। हमने बड़ी मुश्किल से अरेंज किया। लेकिन डॉक्टर ने आधा इंजेक्शन जमीन पर गिरा दिया। हमने कहा इतना महंगा इंजेक्शन है और आपने गिरा दिया। इस पर डॉक्टर बोले कि 50 हजार का भी होता और मैं गिरा देता तो कुछ नहीं कर पाते तुम लोग।''

      रुचि आगे कहती हैं, एक बार पति पॉटी करने के बाद छह घंटे तक बिस्तर पर थे। मैंने सब को बुलाया। ज्योति कुमार एक पुरुष कंपाउंडर था। उससे रिक्वेस्ट किया। उसने कहा कि जरूर मदद करूंगा। मैं पति से बात करने लगी। इसी बीच ज्योति ने मेरी दुपट्टा खींच लिया। कमर पर हाथ भी रख दिया। मेरे पति देखते रहे कि मेरी पत्नी का दुपट्टा खींच रहा है। वह कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थे। मैं भी डर से कुछ नहीं बोल सकी। बाहर आकर बैठ गई। वह आदमी फिर बाहर आया और कहा... मैं ध्यान रखूंगा।

      ''वहां रात में दो बजे बगल में एक मरीज ने दम तोड़ दिया। कई लोग ऐसे ही मर गए। मेरे पति को मायागंज रेफर कर दिया। मायागंज के आईसीयू में चार बेड थे। छह से सात घंटे में चार लोग मायागंज में पति के सामने मर गए। मेरे पति की तबियत यह सब देख अचानक खराब हो गई। पांच-छह बार मेरी बहन बुलाने गई, पर डॉक्टर नहीं आए। डॉक्टर कहते कि रात में भी सोने नहीं दोगे। मैंने देखा डॉक्टर मूवी देख रहे थे। मेरी बहन चिल्लाई तो एक डॉक्टर आए। डॉक्टर ने देखा कि मास्क में ऑक्सीजन का पाइप ठीक से लगाया ही नहीं था। पाइप लगाते ही मेरे पति जैसे जिंदा हो गए। लेकिन इन सात घंटे में उनकी हालत काफी खराब हो गई थी। उन्होंने कहा हमें बाहर ले चलो...।''

      ''हमने पता किया तो दिल्ली के अस्पताल में हमें जगह नहीं मिली। राजेश्वर, पटना में भर्ती कराया। मुझे अंदर जाने से रोक दिया गया। पति कहते रहे पर उनकी भी बात नहीं मानी। उन्हें एंबुलेंस से हम लेकर पटना आए थे, रास्ते में तीन-चार बार पॉटी हुई थी, उसी तरह राजेश्वर में चार-पांच घंटे रखा गया। मैं 10 बार जाकर बोली- चेंज कर दीजिए। पर नहीं किया। उनका ऑक्सीजन लेवल जब 37 हो गया तो मेरे जीजा जी ने किसी तरह मुझे पति के पास भेजा। मैं अंदर गई तो मैंने ऑक्सीजन लेवल बढ़ाकर 74 कर दिया, 10 मिनट में। उसके बाद 15 दिन तक साथ रहकर मैंने उन्हें काफी ठीक कर दिया।''

      ''डॉक्टर कहने लगे कि आपने गजब कर दिया, कैसे ठीक कर दिया। लेकिन डेढ़-डेढ़ घंटे तक ऑक्सीजन सप्लाई बंद रहती थी अस्पताल में। मेरे पति हमेशा डरे हुए रहते। ऑक्सीजन सिलेंडर देखते तो कहते ऑक्सीजन खत्म हो जाएगा...। अस्पताल ऑक्सीजन बंद कर देता था ताकि लोग बेचैन होकर ज्यादा कीमत पर ऑक्सीजन खरीदें। हां, मैंने भी खरीदा। परसों, हम दूसरा सिलेंडर हम मांगते रहे और वह नहीं मिला। मेरे पति खत्म हो गए।''

(स्रोत: दैनिक भास्कर)

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