कोरोना से आई आर्थिक तंगी की चार कहानियां : पटना हाई कोर्ट में मुंशी और स्टेनोग्राफर, लाइट्स सप्लायर और रिक्शा चालक; किसी को न सरकारी मदद मिली, न कोई संगठन हेल्प करने पहुंचा
लेखक : अमित जायसवाल
कोरोना ने हर किसी के लाइफ का बैंड बजा रखा है। जिन लोगों ने कभी आर्थिक तंगी का सामना कभी अपनी लाइफ में नहीं किया था, उन्हें अब एक-एक रुपए के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। परिवार की भूख मिटाने और घर खर्च चलाने में काफी दिक्कतें हो रही है। कोरोना काल में सबसे अधिक परेशानी उन लोगों को हो रही है, जो डेली बेसिस पर काम कर रहे थे। फिर चाहे वो कोर्ट में वकीलों के लिए काम करने वाले मुंशी हों, फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले लोग हों या फिर रिक्शा चलाने वाले। जब तक ये लोग काम नहीं करेंगे तब तक इनके हाथ में एक रुपया नहीं आएगा।
कोरोना की पहली लहर हो या दूसरी, पिछले साल से लगातार आर्थिक मोर्चे पर इन्हें परेशानी झेलनी पड़ रही है। सरकार और स्वयंसेवी संगठनों की तरफ से कई बार ऐसे लोगों की मदद किए जाने की बात कही जाती रही। लेकिन, आज भास्कर आपको उन लोगों से मुखातिब करा रहा है, जिन तक कोरोना काल में न तो सरकारी मदद पहुंची और न ही किसी संगठन वालों ने इनकी हेल्प की।
हाईकोर्ट में मुंशी का काम कर रहे दो भाई परेशान
अनिसाबाद के हरनीचक के रहने वाले कुंदन तिवारी पटना हाईकोर्ट में 2013 से मुंशी का काम कर रहे हैं। हाईकोर्ट कैंपस में ही बड़े भाई चंदन तिवारी स्टोनोग्राफर का काम करते हैं। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने ऐसा कहर बरपाया कि सब कुछ बंद है। अपना काम करके दोनों भाई आम दिनों में हर दिन 4-500 रुपया कमा लेते थे। जब से कोरोना हुआ तो ऑनलाइन एक-दो महीने चला, फिर बंद हो गया। कोई काम नहीं हो रहा है। परिवार में 4 लोग हैं। मुश्किल हो रहा है हर दिन का खर्च निकालना। EMI पर भी कई चीजें खरीदी गई हैं। उसे भरने में परेशानी हो रही है। अब तक किसी संगठन की तरफ से या सरकारी स्तर पर मदद नहीं मिली।
इनके पास राशन कार्ड भी नहीं है। ऐसे में परेशानी और भी ज्यादा बढ़ गई है। सरकार ने जो कहा था कि अकाउंट में रुपए भेज रहे हैं, वो भी नहीं मिला। 2020 के मार्च से ही परेशानी चालू है। पिछले लॉकडाउन से किसी ने कोई मदद नहीं की।
लाइट्स का काम करनेवालों पर तिहरी जिम्मेवारी
पटना के आशियाना नगर इलाके के रहने वाले कलेश्वर सिने इक्यूपमेंट्स के मालिक जय शंकर कुमार काफी परेशान हैं। मिडिल क्लास परिवार से आते हैं। बिहार, झारखंड, यूपी व राजस्थान में शूट होने वाली भोजपुरी फिल्म हो या वेब सीरीज या फिर टीवी सीरियल, हर जगह इनके लाइट्स का इस्तेमाल होता था। लेकिन, कोरोना की वजह से इनका काम ठप है। इनका कहना है कि सरकार ने सबसे पहले सिनेमा इंडस्ट्री को ही बंद किया। लाइट मैन जो काम करते हैं, उनकी समस्या देखनी होती है। ट्रिपल लायवलिटी है। अपने परिवार की, साथ काम करने वाले 15 लाइटमैन की और मकान मालिक की। क्योंकि इक्यूपमेंट को रखने के दो गोडाउन रेंट पर है, जिसे मकान मालिक नहीं छोड़ते हैं। पिछले साल से समस्या बरकरार है। किसी के सामने हाथ फैला नहीं सकते हैं। किसी से कुछ नहीं कहती है। सबसे ज्यादा टैक्स इंटरटेनमेंट सेक्टर से ही सरकार वसूलती है, फिर भी ध्यान नहीं देती है। काम के अनुसार ही डेली बेसिस पर रुपया मिलता है। आम दिनों में हर महीने दो भोजपुरी फिल्म की शूटिंग होती थी। एक रुपए की किसी ने कोई मदद नहीं की। स्थिति बहुत खराब है। उम्मीद यही है कि जल्द ये समस्या खत्म हो और काम शुरू हो।
रिक्शाचालक के पास 8 का परिवार, कोई मदद नहीं
जहानाबाद जिले के रहने वाले अखिलेश प्रसाद पटना के मुन्ना चक इलाके में किराए पर अपने परिवार के साथ रहते हैं। पटना की सड़कों पर रिक्शा चलाते हैं। परिवार में पत्नी, 4 बेटी और 2 बेटा है। कुल 8 सदस्यों का खर्च उठाते हैं। बच्चों को पढ़ाते हैं। इसके लिए रिक्शा चलाकर खुद सुबह से रात तक कड़ी मेहनत करते हैं। आम दिनों में हर दिन 3 से 400 रुपए कमा लिया करते थे। लेकिन, कोरोना काल में सब कुछ ठप हो गया।
बिहार में लॉकडाउन है। बावजूद इसके परिवार को दो वक्त का खाना सही से मिल सके, इसके लिए वो आम दिनों की तरह रोड पर रिक्शा लेकर निकल रहे हैं। उन्हें अपनी जान का डर भी नहीं है। उन्हें चिंता है कि कोई सवारी मिले, जिससे वो कुछ कमा सकें। अखिलेश के अनुसार न तो पिछले लॉकडाउन में उनकी किसी ने मदद की और न ही इस बार। सब कुछ बहुत मुश्किल से चल रहा है।
(स्रोत : दैनिक भास्कर)
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