Saturday, 22 May 2021

कोरोना को हराने में ली प्रकृति की मदद:ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दर-दर भटके, नहीं मिला तो खेत पर पेड़ के नीचे गुजारा वक्त; 3 दिन में ठीक हुए

कोरोना को हराने में ली प्रकृति की मदद : ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दर-दर भटके, नहीं  मिला तो खेत पर पेड़ के नीचे गुजारा वक्त ; 3 दिन में ठीक हुए

     विज्ञान और आधुनिकता के इस युग में आज भी प्रकृति के पास सभी बीमारियों का इलाज है। कोरोना पॉजिटिव होने के बाद सीने के दर्द और सांस लेने में दिक्कत से परेशान पानीपत का युवक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दर-दर भटका। कहीं से भी ऑक्सीजन सिलेंडर न मिलने पर युवक ने खुद को प्रकृति के हवाले कर दिया। तीन दिन में युवक का ऑक्सीजन लेवल सामान्य हो गया और 10 दिन में कोरोना को मात देकर पूरी तरह स्वस्थ भी हुआ। कोरोना काल में सबसे अधिक मारामारी ऑक्सीजन के लिए मच रही है।

पानीपत के गांव नंगला आर निवासी प्रदीप सिंह एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। 3 मई को प्रदीप की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। अस्पतालों का हाल देखकर उन्होंने खुद को होम आइसोलेट करना बेहतर समझा। प्रदीप ने बताया कि रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी, सीने का दर्द भी बढ़ गया। ऑक्सीजन लेवल 80 तक आ गया। ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए उन्होंने कई जगह फोन किए। परिजनों ने भी कई अस्पतालों समेत लोगों के चक्कर काटे, लेकिन सिलेंडर नहीं मिला।

इसके बाद उन्होंने घर के पास अपने खेतों में शरण ले ली। 10 दिन तक वह रोजाना 8 से 10 घंटे पेड़ों के नीचे रहे। खाना-पीना भी वहीं किया। तीन दिन में उनका ऑक्सीजन लेवल सामान्य हो गया। धीरे-धीरे सीने का दर्द भी कम हुआ। सांस बेहतर हुई तो उनका आत्मविश्वास बढ़ा। दोबारा टेस्ट कराया तो 13 मई को उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई।

कोरोना काल में स्वर्ण है प्रकृति : डॉ. बलकार
आर्य डिग्री कॉलेज के बॉटनी डिपार्टमेंट के हैड डॉ. बलकार सिंह ने बताया कि उनका पूरा परिवार कोरोना से पीड़ित था। डॉक्टरों की सलाह पर दवाई लेने के साथ सभी ने अधिकतर समय खेतों और पेड़ों के नीचे बिताया। शहर के मुकाबले खेतों में ऑक्सीजन अधिक होने के साथ यहां के वातावरण में पॉल्यूशन जीरो है और डस्ट पार्टिकल नहीं है। जिससे सांस बेहतर आती है और शरीर को पॉल्यूशन मुक्त ऑक्सीजन मिलती है। कोरोना काल में प्रकृति स्वर्ण से कम नहीं है।

ऑक्सीजन के लिए घर से बेहतर है प्रकृति : डॉ. गौरव

IBM अस्पताल के डॉ. गौरव ने बताया कि पेड़-पौधे ऑक्सीजन का प्राकृतिक स्त्रोत है। आजकल अधिकतर मकान चारों तरफ से बंद हैं, वेंटिलेशन नहीं है। जिस कारण घरों में पूरी ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। ऐसे में पेड़-पौधे और खेतों में प्रदूषण मुक्त ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मौजूद है। खेतों की मिट्‌टी से आने वाली खुशबू और प्रकृति की ऑक्सीजन कोरोना मरीज के लिए बेहतर है।

(स्रोत : दैनिक भास्कर)

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