गांधीनगर से 27 किलोमीटर दूर माणसा तहसील के 48 गांवों की कुल आबादी साढ़े तीन से चार लाख है। माणसा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का पैतृक गांव है। माणसा टाउन में एक सरकारी हॉस्पिटल है, जिसमें 10 बेड हैं। चार प्राइवेट अस्पतालों में से हर एक में 5-7 बेड हैं। यानी हर 10 हजार की आबादी पर केवल बमुश्किल एक बेड है। ऐसे में स्थिति गंभीर हो तो मरीजों को गांधीनगर तक लाना पड़ता है।
यहां के बिलोद्रा गांव में पिछले महीने 260, इटादरा में 240, लिंबोद्रा में 120 और बालवा में 70 लोगों की कोरोना से मौत हुई थी। इसमें नाबालिगों की संख्या लगभग 10-20% है।
भाजपा नेता और पूर्व विधायक अमित चौधरी ने अपने शिक्षा संस्थान में नमो कोविड केयर सेंटर चालू किया है। डॉक्टर न मिलने पर माणसा रेफरल हॉस्पिटल के डॉक्टरों को बुला लिया। अब सरकारी अस्पताल रामभरोसे है। दो दिन में ऑक्सीजन खत्म हो गई तो 14 मरीजों को इमरजेंसी में गांधीनगर सिविल अस्पताल रेफर करना पड़ा। उसी दिन से ये कोविड केयर सेंटर बंद हो गया। गांवों में अप्रैल से ही स्वैच्छिक कर्फ्यू पर अमल हो रहा है। शादी समारोह भी रद्द है।
लाइव-1 समय- सुबह 10 बजे, स्थान- माणसा का सरकारी अस्पताल
ऑक्सीजन की कमी, इसलिए सिर्फ 10 बेड
माणसा के सरकारी रेफरल हॉस्पिटल के मेडिकल ऑफिसर डॉ. जितेश बारोट ने बताया कि यहां कोरोना के लिए 16 बेड हैं, पर ऑक्सीजन कम है। इसलिए 10 मरीजों को ही भर्ती करते हैं। 6 बेड खाली रखते हैं, क्योंकि कभी इसमें से किसी को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी तो नहीं दे सकते हैं। यहां 2-4 डॉक्टर मौजूद रहते हैं। कभी-कभी हमें चौबीसों घंटे ड्यूटी पर रहना पड़ता है। अभी केस घटे हैं, पर पिछले महीने रोजाना कम से कम 15 से 20 मरीज ऐसे आते थे जो गंभीर होते थे। हम उनका इलाज नहीं कर पा रहे थे।
प्राइवेट अस्पताल में ऑक्सीजन खुद लाना है
लिंबोद्रा के स्थानीय नेता अशोकसिंह वाघेला ने बताया कि गरीब मरीज प्राइवेट अस्पताल में जाएं तो 40 से 50 हजार खर्च करने पर बेड मिलता है। ऑक्सीजन, इंजेक्शन और दवा की व्यवस्था भी खुद ही करनी पड़ती है।
गांवों में टेस्टिंग की कमी
यहां के गांवों में ये आइसोलेशन सेंटर, टेस्टिंग की सुविधा नहीं है। इतना ही नहीं टेस्टिंग सेंटर केवल माणसा और यहां के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ही है। वहां भी टेस्टिंग किट कम पड़ जाती है।
बुखार आने के 3 घंटे के अंदर मौत हो गई
यहां के धोणकुवा गांव का 35 साल के अल्पेश ठाकोर मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर बहुत सावधानी रखते थे। एक दिन उसे बुखार हुआ, माणसा के प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने गए। डॉक्टर ने उन्हें खून के थक्के बनने से रोकने के लिए एक इंजेक्शन दिया। अस्पताल से घर आए तो सांस फूलने लगी। गांधीनगर ले जाने की तैयारी थी, लेकिन गांव के बाहर पहुंचते ही उनकी माैत हो गई। गर्भवती पत्नी मायके में है। बेटे की मौत से परिवार बेसहारा हो गया।
(स्रोत : दैनिक भास्कर)
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