अमेरिकी विशेषज्ञों का दावा:बच्चों को भी वैक्सीन लगवाना जरूरी
पहली वजह है- बच्चों में कोरोना के लंबे समय के लिए होने वाले असर (जैसे इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम) के जो भी मामले सामने आए, वे बेहद गंभीर निकले। हालांकि इनकी संख्या बेहद कम है।
कोरोना के कई और बुरे प्रभावों को लेकर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं। वजह यह कि बच्चों में कोरोना के ज्यादातर मामले एसिमटोमैटिक हैं। ऐसे में माता-पिता को बच्चों में कोरोना का पता नहीं चलता। ये दूसरी वजह सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन इस पर सबसे कम ध्यान है।
दरअसल, इस बात की पूरी संभावना है कि वायरस फैलता रहेगा और यह ज्यादा खतरनाक रूप में म्यूटेट यानी बदलता रहेगा। ऐसा कोई एक या एक से ज्यादा म्यूटेशन बच्चों को भी नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं।
अभी बच्चों में कोरोना का असर कम, जरूरी नहीं हम आगे भी भाग्यशाली रहें
वायरस के कुछ नए वैरिएंट्स ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका, ब्राजील और कैलिफोर्निया में मिल चुके हैं। एपिडेमियोलॉजिस्ट इन वैरिएंट्स पर निगाह रखे हुए हैं। इनमें से कुछ पुराने वैरिएंट्स के मुकाबले तेजी से फैलने वाले हैं। वहीं ब्रिटेन में मिले बी1.1.7 वैरिएंट में मौत की दर ज्यादा पाई गई है। हालांकि अच्छी बात यह है कि मौजूदा वैक्सीन इन वैरिएंट्स के खिलाफ भी काम कर रही हैं।
दोनों अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि जरूरी नहीं कि हम भविष्य में सामने आने वाले कोरोना वायरस के वैरिएंट्स को लेकर इतने भाग्यशाली रहें। वायरस जितना ज्यादा फैलेगा, उसके उतने ही ज्यादा वैरिएंट्स सामने आएंगे। वे ज्यादा खतरनाक होते जाएंगे।
बच्चों से ही कोरोना वायरस के ऐसे वैरिएंट्स सामने आएंगे, जो बच्चों को गंभीर रूप से बीमार कर देंगे। खासतौर पर जब वयस्कों में वैक्सीनेशन के चलते वायरस को पनपने के लिए अच्छे मेजबान की जरूरत होगी। डॉ. जेरेमी और डॉ. एंजेला का कहना है कि बच्चों का जल्द ही तेजी से वैक्सीनेशन करना चाहिए ताकि ऐसी कोई भयावह स्थिति पैदा न हो जाए।
हर्ड इम्यूनिटी के लिए जरूरी है कि बच्चों को वैक्सीन लगे
संक्रामक बीमारियों के जाने-माने अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फौसी समेत कई विशेषज्ञों का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी को हासिल करने के लिए बच्चों का वैक्सीनेशन जरूरी है।
कोरोना वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित हैं, इसकी जांच के लिए क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं, लेकिन हमें इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि इन ट्रायल्स से कोई ब्लॉकबस्टर नतीजे सामने आने वाले नहीं।
हम शायद यह नहीं जान पाएंगे कि बच्चों में इस गंभीर संक्रमण को रोकने के लिए यह टीके कितने प्रभावी होंगे, क्योंकि सौभाग्य से इस समय संक्रमित बच्चों की संख्या इतनी ज्यादा नहीं है कि उन पर सही नतीजे देने वाले ट्रायल किए जा सकें।
अमेरिका में बच्चों के लिए चल रहे ट्रायल्स का फोकस वैक्सीन के सुरक्षित होने और उनसे इम्यूनिटी पैदा होने पर रहेगा। यानी ट्रायल से पता करने की कोशिश की जाएगी कि क्या ये वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित हैं? और वैक्सीन की कितनी खुराक किसी तरह के बड़े साइड इफेक्ट के बिना पर्याप्त इम्यूनिटी पैदा करेगी या नहीं।
हालांकि नकारात्मक बात यह है कि इन ट्रायल्स के पॉजिटिव नतीजों के बाद भी माता-पिता अपने बच्चों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं होंगे, क्योंकि उन्हें लगता हैं कि उनके बच्चे सुरक्षित हैं।
जो मम्मी-पापा बन चुके, उनमें वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट
एक नए अध्ययन के मुताबिक जो लोग माता-पिता नहीं, उनके मुकाबले माता-पिता बन चुके लोग कोरोना वैक्सीन लगवाने में हिचकिचाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के वैक्सीन लगवाने के मामले में भी यही भावना आड़े आ सकती है।
कोरोना वायरस से 10 हजार संक्रमित बच्चों में से एक बच्चे की मौत हो सकती है, हालांकि कुछ अन्य अध्ययन इस दर को कम बता रहे हैं। अमेरिका के इन दोनों विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट्स के मुकाबले वायरस से होने वाला नुकसान ज्यादा भारी है।
किसी भी दूसरी वैक्सीन की तरह हमें इस संभावना के लिए तैयार रहना चाहिए कि वैक्सीनेशन के बाद बीमार होने के वाले बच्चों के किस्से सामने आएंगे और वैक्सीन को दोष दिया जाएगा। मगर हम वैक्सीनेशन को रोक नहीं सकते।
(स्रोत:दैनिक भास्कर)
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